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एक फूल और बचपन

Vishesh
Vishesh
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एक फूल और बचपन
होते एक समान हैं।
बचपन अपनी मस्ती में है
फूल को भी न गुमान है।

गुलशन में जब बचपन
करने लगे अठखेलियां।
इठलाता है फूल मगन हो
आतुर होतीं बन्द कलियाँ।

आज सुबह फिर बचपन
जब जा पहुंचा गुलशन में।
फूल को न पाकर उदास हो
घबराने लगा मन ही मन में।

माली बोला प्रातः ही कोई
तोड़ ले गया डाली के संग।
पहले सूँघा फिर उछाला
फिर मसल दिया उसका रंग।

अपने नन्हे हाथों में उठाकर
काश कष्ट तेरे सब ले लूँ मैं।
बहुत जोर रोया बचपन
अब कैसे तुम बिन खेलूं मैं?

माली ने रख लिया बचपन को
गुलशन की रखवाली में।
सूखी रोटी गन्दे कपड़े ही देता
उसे होली, ईद,दीवाली में।

कलम खरोंचती बर्तन की कालिख
किताबें जलाकर भोजन बना
बनना था गुलशन का मालिक
गुलाम वो मासूम बचपन बना।

निज स्वार्थ में भविष्य किसी का
न कदमों तले कुचल डालो।
बचपन को न कैद करो कभी
न फूलों के रंग मसल डालो।

वैभव”विशेष”

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