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राजनीति की बेदी पर एक और किसान कुर्बान हुआ।
ठुकराया जिसे धरती ने ,बेदर्द बहुत आसमान हुआ।
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सोचा था अब वक़्त आ गया दुःख सारे मिट जायेंगे।
मगर गीली माटी में मिल ओझल निज अरमान हुआ।
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लाशों पर बिछा हुआ बिस्तर काले नोटों का।
कब थमेगा सिलसिला इन मासूम मौतों का?
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जिस दिल में सपने पलते थे दिल का दौरा पड़ गया।
जिस बदन ने सींचा खेतों को जहर से नीला पड़ गया।
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परिजन के आंसू सूख गए,सिसकियाँ भी दम तोड़ रहीं।
झूठे वादों ने मुहँ फेर लिया ,बोझ कर्ज का बढ़ गया।
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रक्त से भरता रहेगा बैंक सत्ता के वोटों का।
कब थमेगा सिलसिला इन मासूम मौतों का?
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आत्महत्या के बाद जो तुमने धन देने का ऐलान किया।
आधा ही दे देते पहले,क्यूँ दाता का घर शमशान किया?
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प्राकृतिक आपदा पर तो मनुष्य का है नहीं जोर कोई।
मुर्दे को पानी पिला कर तुमने कौन सा एहसान किया?
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दीन दुर्दशा किसान की दर्द कराह उठा होंठों का।
कब थमेगा सिलसिला इन मासूम मौतों का?
वैभव”विशेष”
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